नशा है नरक का द्वार
मैं लौटना चाहता हूं
फिर वही पुरानी यादों में
कभी न पीना दारू सज्जनों
क्योंकि नशा है नरक का द्वार।
सतयुग त्रेता हो या कलयुग
नशेड़ी हमेशा हुआ है बदनाम
द्वापर में कौरव पांडव जुआं खेल गए
यह भी था राजसी नशा।
नशे में मानव खुद करता है
अपनी ही बर्बादी
और दुःख भोगता है बारहों महीने
क्या होली क्या दिवाली।
खुशी तो मिलती ही नहीं है कभी
उम्मीदें भी टूट जाती है सारी
नशा एक ऐसी बीमारी है
डूब गए तो निकलना मुश्किल हो जाती है।
कोई भी धूम्रपान हो या सिगरेट पीना भी
सब नशा है सज्जनों
इसे फैशन समझने की भूल मत करना
क्योंकि ये करोड़ों घर खा चुका है।
रहना है नशा से हरदम दूर सज्जनों
पीना नही है कभी भी शराब
जो भी पीया है इसें
उसका जीवन हुआ है खराब
कभी न पीना दारू सज्जनों
क्योंकि नशा है नरक का द्वार।
नूतन लाल साहू नवीन